वास्तु शास्त्र में 16 दिशाएं

वास्तु शास्त्र में 16 दिशाएं और उनके गुण

वास्तु शास्त्र एक प्राचीन विज्ञान है जो भवन निर्माण और आंतरिक सज्जा में दिशाओं (16 दिशाएं ) के महत्व को दर्शाता है। इसमें 16 दिशाओं (16 दिशाएं ) का विशेष महत्व होता है, जिनके उचित प्रयोग से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह संभव होता है। यह ब्लॉग उन16 दिशाओं का विस्तृत विवरण, उनके गुण, और उनके उपयोग के बारे में बताएगा।

वास्तु शास्त्र में मुख्यत: 8 प्रमुख दिशाएं होती हैं, लेकिन इन 8 दिशाओं के मध्य स्थित 8 उप-दिशाएं भी महत्वपूर्ण होती हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 16 दिशाएं होती हैं। ये हैं:

  1. पूर्व (East)
  2. आग्नेय (South-East)
  3. दक्षिण (South)
  4. नैऋत्य (South-West)
  5. पश्चिम (West)
  6. वायव्य (North-West)
  7. उत्तर (North)
  8. ईशान (North-East)

पूर्व से उत्तर-पूर्व (ENE)
दक्षिण-पूर्व के पूर्व (ESE)
दक्षिण-पूर्व के दक्षिण (SSE)
दक्षिण-पश्चिम के दक्षिण (SSW)
दक्षिण-पश्चिम के पश्चिम (WSW)
उत्तर-पश्चिम के पश्चिम (WNW)
उत्तर-पश्चिम के उत्तर (NNW)
उत्तर-पूर्व के उत्तर (NNE)

पूर्व (East)

स्वामी ग्रह: सूर्य
तत्व: अग्नि
प्रमुख गुण: शक्ति, प्रसिद्धि, आत्मविश्वास
अनुशंसित कार्य: मुख्य द्वार, पूजा कक्ष, बैठक कक्ष
टिप्स: इस दिशा को स्वच्छ और प्रकाशयुक्त रखना चाहिए।

आग्नेय (South-East)

स्वामी ग्रह: शुक्र
तत्व: अग्नि
प्रमुख गुण: ऊर्जा, स्वास्थ्य, समृद्धि
अनुशंसित कार्य: रसोईघर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
टिप्स: इस दिशा में जल से संबंधित वस्तुएं न रखें।

दक्षिण (South)

स्वामी ग्रह: मंगल
तत्व: पृथ्वी
प्रमुख गुण: स्थिरता, शक्ति, आत्म-विश्वास
अनुशंसित कार्य: शयनकक्ष, भारी वस्तुएं
टिप्स: इस दिशा में मंदिर स्थापित न करें।

नैऋत्य (South-West)

स्वामी ग्रह: राहु
तत्व: पृथ्वी
प्रमुख गुण: स्थिरता, शक्ति, सफलता
अनुशंसित कार्य: भंडार कक्ष, भारी फर्नीचर
टिप्स: यह दिशा असंतुलन होने पर मानसिक तनाव उत्पन्न कर सकती है।

पश्चिम (West)

स्वामी ग्रह: शनि
तत्व: जल
प्रमुख गुण: स्थिरता, भंडारण, संयम
अनुशंसित कार्य: स्टोर रूम, जल संग्रहण
टिप्स: इस दिशा में मंदिर बनाने से बचें।

वायव्य (North-West)

स्वामी ग्रह: चंद्रमा
तत्व: वायु
प्रमुख गुण: संचार, सामाजिक संबंध
अनुशंसित कार्य: अतिथि कक्ष, शयनकक्ष
टिप्स: इस क्षेत्र को हवादार और खुला रखें।

उत्तर (North)

स्वामी ग्रह: बुध
तत्व: जल
प्रमुख गुण: धन, व्यापार, करियर
अनुशंसित कार्य: तिजोरी, ऑफिस कक्ष
टिप्स: इस दिशा में जल स्रोत स्थापित करना शुभ होता है।

ईशान (North-East)

स्वामी ग्रह: गुरु (बृहस्पति)
तत्व: जल
प्रमुख गुण: आध्यात्मिकता, सकारात्मक ऊर्जा
अनुशंसित कार्य: पूजा स्थल, जल स्रोत
टिप्स: इस दिशा को हमेशा स्वच्छ और पवित्र रखें।

पूर्व से उत्तर-पूर्व (ENE)

स्थान: पूर्व और उत्तर-पूर्व के बीच
महत्व: यह दिशा ज्ञान, शिक्षा और मानसिक शांति के लिए महत्वपूर्ण होती है। यहां पूजा कक्ष, अध्ययन कक्ष या ध्यान स्थल बनाना शुभ माना जाता है।

दक्षिण-पूर्व के पूर्व (ESE)

स्थान: पूर्व और दक्षिण-पूर्व के बीच
महत्व: यह अग्नि तत्व से जुड़ी दिशा है, इसलिए यहां रसोईघर रखना शुभ होता है। यहां गैस चूल्हा या अग्नि स्रोत रखने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

दक्षिण-पूर्व के दक्षिण (SSE)

स्थान: दक्षिण और दक्षिण-पूर्व के बीच
महत्व: यह स्वास्थ्य और ऊर्जा प्रवाह से जुड़ी दिशा है। यहां अधिक भार या भारी वस्तुएं रखने से थकान व स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

दक्षिण-पश्चिम के दक्षिण (SSW)

स्थान: दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम के बीच
महत्व: यह दिशा स्थिरता और शक्ति का प्रतीक होती है। इस क्षेत्र में अधिक वजनदार वस्तुएं रखना उचित होता है।

दक्षिण-पश्चिम के पश्चिम (WSW)

स्थान: पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम के बीच
महत्व: यह दिशा परिवार के बंधन और आपसी संबंधों को मजबूत करती है। यहां स्टोर रूम या भारी वस्तुएं रखना शुभ होता है।

उत्तर-पश्चिम के पश्चिम (WNW)

स्थान: पश्चिम और उत्तर-पश्चिम के बीच
महत्व: यह दिशा आनंद, मनोरंजन और सामाजिक जीवन को दर्शाती है। यहां लिविंग रूम, टीवी रूम या पार्टी एरिया रखना शुभ होता है।

उत्तर-पश्चिम के उत्तर (NNW)

स्थान: उत्तर और उत्तर-पश्चिम के बीच
महत्व: यह दिशा मित्रता और सामाजिक मेलजोल से जुड़ी होती है। इस क्षेत्र को साफ और व्यवस्थित रखना शुभ होता है।

उत्तर-पूर्व के उत्तर (NNE

स्थान: उत्तर और उत्तर-पूर्व के बीच
महत्व: यह दिशा मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है। यहां ध्यान कक्ष, जल स्रोत या पौधे रखना शुभ माना जाता है।

16 दिशाएं वास्तु टिप्स

पूजा कक्ष: उत्तर-पूर्व में रखना सबसे शुभ होता है।
मुख्य द्वार: पूर्व या उत्तर दिशा में होना लाभकारी है।
रसोईघर: आग्नेय कोण में स्थापित करना चाहिए।
शयनकक्ष: दक्षिण-पश्चिम दिशा में होने से स्थिरता बनी रहती है।
बगीचा: उत्तर-पूर्व या पूर्व में लगाना शुभ माना जाता है।
तिजोरी: उत्तर दिशा में रखने से धन वृद्धि होती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार 16 दिशाओं (16 दिशाएं) का उचित उपयोग आपके घर, कार्यालय या किसी भी भवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन दिशाओं के सही संतुलन से न केवल सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, बल्कि सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और सफलता भी प्राप्त होती है। अपने भवन के निर्माण या आंतरिक सज्जा के समय इन दिशाओं के नियमों का पालन करने से आपको सर्वोत्तम परिणाम मिल सकते हैं।

यदि आप अपने घर में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करके सुख-समृद्धि लाना चाहते हैं, तो 16 दिशाओं (16 दिशाएं) का ज्ञान आपके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा। 

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